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सियासी पिच, क्या सचिन हैं फिट?

अंतर्व्यथा
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खेल में राजनीति एक ऐसा मुद्दा है जिसपर अंतहीन बहस हो सकती है. खेल और राजनीति परस्पर विरोधाभासी माने जाते रहे हैं, किन्तु रणनीति और कूटनीति खेल के ही अभिन्न अंग है। फिर अगर कोई खिलाड़ी खेल से इतर राजनीति में कूदें तो क्या गलत है और क्या सही यह कहना जरा मुश्किल लगता है।

सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट की एक ऐसी शख्सियत हैं जो शायद क्रिकेट से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं। उनके समर्थक उन्हें क्रिकेट के हर प्रारूप में खेलते हुए देखना चाहते हैं। अब सचिन राजनीति के क्षेत्र में कितने सफल होते हैं यह आने वाला वक्त ही बताएगा। सचिन भारत के पहले खिलाड़ी नहीं हैं जो खेल के मैदान से राजनीति में दाखिल हो रहे हैं। लेकिन मुद्दा यह है की सचिन क्रिकेट जगत के दिग्गज खिलाड़ी हैं, पूरी दुनिया उनका लोहा मानती है क्या उनसे यह उम्मीद करना बेईमानी है कि वह ताउम्र क्रिकेट के प्रति समर्पित रहें, दरअसल यह बात काफी हद  तक उन समर्थकों के गले नहीं उतर रही जो सचिन को एक राजनीतिज्ञ के रूप में नहीं देखना चाहते।

भारतीय राजनीति का चेहरा काफी बदल सा गया है, वर्तमान परिदृश्य में राजनीति को आम जनता विकृत रूप में देखती है। एक ईमानदार राजनेता भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। सचिन तेंदुलकर को निश्चित रूप से ऐसे नजरिये का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी अहम् बात यह है कि imagesसचिन के क्रिकेट प्रसंशक यह चाहते हैं कि वह आगे भी क्रिकेट का हिस्सा बने रहेंगे चाहे वह एक क्रिकेटर के रूप में हो या एक कोच की भूमिका में हों।

राज्यसभा का सदस्य मनोनीत करने के पीछे कई निहितार्थ हो सकते हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी सचिन के माध्यम से अपना राजनैतिक हित साधने की कोशिश करे, यह सब जानते हुए राजनीति में आना किसी खास मकसद से प्रेरित हो सकता है। सचिन ने अपने काम को हमेशा संजीदगी के साथ किया है इसलिए वह सफल भी हैं। वह यह बात स्वीकार करते रहे हैं कि क्रिकेट ही उनकी दुनिया है। अब अपनी राजनीतिक पारी को वह कितना योगदान देते हैं यह रोचक होगा। अकेले होकर दो क्षेत्रों को संभालना चुनौतीपूर्ण होगा साथ ही साथ आलोचकों कि नजरें भी उन पर बराबर बनी रहेगी। सचिन के पास अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के बाद भी विकल्पों कि कोई कमी नहीं रहती, फिर राजनीति में आने का उनका यह निर्णय थोड़ा अटपटा सा लगता है। क्रिकेट के बाद भी उनके लिए कई संभावनाएं थी वह चाहते तो क्रिकेट सीखनें के प्रति उत्सुक रहने वाले नवयुवकों को सिखाने का कार्य कर सकते थे। यह भी हो सकता है कि वह राज्यसभा के सदस्य होकर भी यह कार्य कर सकें। क्योंकि इस तरह के मामलों में सदस्य बनना एक औपचारिकता ही होती है, सुर कोकिला लता मंगेशकर को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है।

क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है, राजनीति में भी कुछ निश्चित नहीं रहता। समय-समय पर इसमें बदलाव देखे जाते रहे हैं, यह सिर्फ सचिन ही निर्धारित कर सकते हैं कि वह राजनीति में आने के लिए तैयार हैं या नहीं।

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